hindi story episode.25(1/2) krishna janmashthami….mishra’s lover hindi love story
10aug 2012.
“krishna janmashthami”
मे सुबह जोगिन्ग करने के बाद जब घर आया, तब मुझे मम्मी ने याद दिलाया…… ” आज तो krishna janmashthami है, तुम व्रत रहोगे या नही???”
अब सोचना तो कुछ था ही नही, मेरा 3-4 साल से रूटीन था कि मे krishna janmashthami का व्रत skip नही करता था, उस पर से मेरा व्रत रहने का तरीका भी काफी अलग – थलग है| व्रत के दोरान मे अन्न के साथ -2 जल की एक बून्द भी ग्रहण नही करता| अब चून्की मे हल्की- फुल्की दोड लगाकर आ रहा था तो मेरा गला सूखे जा रहा था, लेकिन फिर भी मे अपने विचार पर अडिग था|
दैनिक कार्यो से निव्रत होने के बाद , मम्मी के साथ मिलकर थोडी बहुत पूजा-पाठ की गतिविधियाँ निभायी| फिर बडे जद्दोजहद के बाद किसी तरह दिन गुजरा ओर शाम हुयी|
krishna janmashthami के शुभ अवसर पर ,जैसा कि हमारे अपने शहर के रीति- रिवाज थे| कुछ लोग अपने- अपने घरो मे krishna के जन्म की शुभ बेला की कुछ मनमोहक झाकियाँ घरो मे श्रध्दा के अनुसार सजाया करते है| ये रीति-रिवाज कोई एक दो साल से शुरुआत नही हुये है| मुझे याद है अपने बचपन के जब- तक के पल याद आते है| इन झाकियो को तब से निहारता चला आ रहा हु| इन सब से परे,कुछ मन्दिर जैसे काली देवी मन्दिर्,चोमुख्री मन्दिर्, पथवारी मन्दिर्, हनुमान मन्दिर , मेला वाला बाग्,पजाबी काँलोनी मन्दिर आदि की साज्- सज्जा पर काफी ध्यान दिया जाता है| इतनी तैयारियो के बाद सारे मन्दिर बहुत ही लुभावने प्रतीत होते है| मन्दिर की साज्- सज्ज| के साथ – साथ प्रसाद वितरण का आयोजन भी किया जाता है| कुछ श्रध्दालू रास्ते पर कही – कही प्रसाद वितरण्, शरबत्,टाँफिया, आइस क्रीम्, खीलदाने,पूडी-सब्जी जैसे प्रसादो का आनन्द के साथ वितरण किया करते है| true love story
हर साल की तरह मैने रिम्पी ओर अपने कुछ दोस्तो के साथ घूमने ओर झाँकियो को देखने का मन बनाया| हम सभी काली देवी मन्दिर , पथवारी मन्दिर व रास्ते मे पडने वाली बडी – छोटी झाँकियो को देखते हुये, अन्त मे धोबी गली वाले मन्दिर पर आकर रुके| असलियत मे तो इस मन्दिर का नाम मेरी जानकारी के हिसाब से हनुमान मन्दिर ही है| पर सामन्यत: हमारे मोहल्ले मे सभी उसे पजाबी मन्दिर बोलते है| उस दिन मन्दिर अन्दर से बहुत ही भव्य सजाया हुआ था| उसके साथ ही साथ बाहर भी मन्च बनाकर कुछ खास प्रोग्रामो का आयोजन था|
हम सभी वहाँ लगभग 9 बजे पहुन्चे थे| मन्दिर के अन्दर की साजो- सज्जा व krishna जी के दर्शन पाने मे लगभग 40 मिनट के ऊपर लग गये | उसके बाद हम सभी लगभग 35-40 मिनट तक बाहर हो रहे प्रोग्राम से आनन्दित हुये | फिर हमारे साथ के कुछ लोगो ने घर चलने का प्रस्ताव रखा वेसे समय भी काफी हो चुका था, घडी की सुईयाँ रात के 10:30 बजा रही थी| मेरे साथ के ज्यादातर लोग इस प्रस्ताव को पारित करने के favour मे थे | लेकिन कोई था जो इस बात से सहमत नही था ओर वो था “मे” | मैने उन सभी लोगो को विकल्प दिया कि ,”अगर कोई रुकना चाहे तो मेरे साथ रुके वरना तुम सभी लोग जा सकते हो मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगेगा “|
सभी लोग जा चुके थी अब मे अकेला बचा था| किसी को क्या पता मेरे मन मे क्या चल रहा था | मेरे वहाँ रुकने की कोई वजह थी| जिसके तहत मुझे उसके आने का इन्तजार था, ओर साथ -2 यकीन भी| उस दिन मेरा आत्म विश्वास हिमालय की चोटी जितना उँचा था | मे मन्दिर मे अन्दर krishna जी से माँग के आया था,” hey krishnaa आज की तारीख मे उसके दीदार चाहिये.”
मन्दिर के बाहर जो पेड है ,उसके नीचे मन्च बना हुआ था| जिस पर शिव जी का ताँडव , गोपियाँ ओर kriahnaa के रूप मे सजे हुये रासलीला कार्यक्रम्, भक्ती गीतो पर न्रत्य आदि कार्यक्रम चल रहे थे |मन्दिर के ठीक सामने, जो घर है मे उसके पास खडा हुआ था| काफी देर तक मे अकेला खडा रहा| घडी मे समय देखने पर मालूम हुआ 11 बज चुके थे| मुझे घर जाने के लिये देर हो रही थी| व्रत तोडने के लिये स्नान प्रक्रिया, पूजा-पाठ सामग्री जैसी तैयारिया करनी थी |मम्मी का फोन भी आ चुका था मम्मी पूछ भी रही थी” रिम्पी घर आ गया, तुम वहाँ क्या कर रहे हो”| मैने मम्मी को बहुत जल्द घर पहुचने का आश्वासन दिया|
स्पश्ट: है कि मेरा ध्यान्. मन्च पर तो नही टिक पा रहा था| भीड बहुत ज्यादा होने की बजह से उस छोटी जगह मे ढेर सारे लोग थे |मन्दिर मे दर्शन के लिये जाने वाले श्रध्दालू, मन्दिर के मुख्य दरवाजे से प्रवेश कर , बगल के दरबाजे से निकल कर्, मन्च यानी पेड के पीछे से होते हुये वापस मन्दिर के सामने आने मे सफल हो पा रहे थे|
समान प्रक्रिया का पालन करते हुये श्रध्दालुओ का कुछ जब मन्दिर के सामने आया उन लोगो के बीच ……….to be continued ………
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