sl num 34…. continue…
अन्ततः मैने गेट के पीछे खडे रिम्पी की ओर देखा,वो पहले से ही स्थिति से पूरी तरह बाकिब था,उसने भी अपने हाथो व चेहरे के एक्स्प्रेसन से मुझे बोल के लिये इशारा किया,वो लगातात एक ही बात बोले जा रहा था…….बोल्……..बोल …..बोल …..कुछ तो बोल ..
हालांकी इतनी दूर से मे रिमपी की आवाज तो नही सुन पा रहा था,लेकिन उसके हिलते हुये ओंठो से साफ पता चल रहा था ,कुछ देर लगातार यही बोलने
के बाद उसके चेहरे पर हल्का सा गुस्सा उभर आया /
परंतु मे भी क्या करता ,मै दिल से तो बोलना चाह रहा था ,पर जुवान मेरे दिल का साथ नही दे रही थी,इन सब के बीच मन कुछ करने मे असमर्थ
था ,अब अब बची थी सिर्फ आंखे ,तो आंखो से तो बस उसे देखा जा सकता था ,तो आंखे अपना काम बखूबी किए जा रही थी /क्यूंकी आंखे ना तो बोल सकती
है और ना ही सोच सकती है ,वो बात अलग है की बिना बोले ही आंखे काफी कुछ बोल जाती है लेकिन उस बोलने पर हम शत प्रतिशत यकीन नही कर
सकते ,क्यूंकी कान ,मुह से बोले हुये शब्दो को सुनकर ही आगे मस्तिष्क तक बात को पहुंचाते है
अब जब मेरे ओंठ सुखने लगे तो मैंने अपनी जीभ को अपने शुष्क होंठो पर फेरते हुये मैंने एक बार मिश्रा जी की तरफ देखा ,इस बार हम दोनों की
आंखे टकरायी,ओर फिर से हम दोनों सहम गए ,अब तक पूरी तरह मेरी समझ मे आ चुका था कि मुझसे फिलहाल तो नही हो पाएगा ,ओर वो भी सिर्फ मेरे
मुह से ही पहल कराना चाह रही है ।/ स्थिति बहुत ज्यादा नाजुक हो चुकी थी ,अब तक उसने अपनी साइकिल का ताला खोल लिया था ,उसके साथ साथ मैंने
भी ये छोटा सा काम कर लिया था /
मिश्रा जी ने जाने के लिए अपनी साइकिल उठाई ,उनकी सहेली तो पहले से ही तैयार खड़ी थी ,वो तो सिर्फ मिश्रा जी का इंतजार कर रही थी /अब
जब वो दोनों चल दिये ,मेरा दिल एकदम बैठ सा गया ,मेरे हाथो के सारे रोंगटे खड़े हो गए /मन तो हुआ कि अब उसको हाथ पकड़ कर रोक लू ,पर ना तो मेरे
जमीर ने मुझे इजाजत दी ओर ना ही इतनी हिम्मत मै जूटा पाया ,अब जब मेरे पास कोई चारा नही बचा ,तो मैंने भी अपनी साइकिल मिश्रा जी की साइकिल
के पीछे लगा दी/ उन दोनों के पीछे पीछे ही मै भी साइकिल स्टेंड के गेट से बाहर आ गया /
रिमपी जो कि पहले से ही बाहर खड़ा था ,उन दोनों के चार -पाँच कदम आगे निकल जाने के बाद मेरे बराबर मै आके चलने लगा / उसके मुह से
एक ही सवाल निकला ,जिसका मुझे पहले से ही अंदाजा था ,वो बोला ,” कुछ बात हुयी ?”
मै एकदम चुप था ,लेकिन मेरे आंखे अभी भी आगे चल रही मिश्रा जी पर टिकी हुयी थी ,क्यूंकी मुझे पता था ,अभी दो चार कदम के बाद वो साइकिल
पर चढ़ कर चली जाएगी /इसलिए मै ज्यादा से ज्यादा देर उसको देखना चाहता था /
जब मेरे मुह से कोई शब्द नही निकला,तो रिम्पी ने मेरे मुह की तरफ देखा ,मेरे चुप्पी देखकर शायद उसे उसका जबाब मिल चुका था /हमेशा की तरह
मिश्रा जी ने अपने बालो की चोटी बना रखी थी /जैसा की मैंने किताबों मे पढ़ा है ,उसकी चोटी भी एकदम काली नागिन की तरह ही दिख रही थी /उसकी
चोटी उसकी कमर को भी पार करके नीचे निकल जाती है ओर जब वो चलती है ,तो जब वो बाया कदम आगे रखती है तो उसकी चोटी दायी ओर ,जब दाया
कदम रखती है तो उसकी चोटी बायी ओर लहरा जाती है/
मै उसकी चोटी के बारे मे सोच ही रहा था की मुझे प्रतीत हुआ की शायद मेरे मन की ये बाते उसने सुन ली हो ,क्यूंकी अगले ही पल उसने अपनी चोटी
अपने दाये कंधे की ओर से आगे डाल ली ओर इस अंदाज मे तो मिश्रा जी एकदम कहर ढाते है /
मैंने तुरंत रिम्पी की ओर देखकर ,आँख मारी ।मिश्रा जी की ओर इशारा करते हुये,मैंने बहुत ही हल्के स्वर मे कहा ,” कमाल लग रही है ना ?” मेरे इस
बात पर रिम्पी कोई response नहीं कर पाया ,शायद वो confuse हो गया होगा की कैसेreact करे /
हम सब कॉलेज से लगभग 50 मीटर दूर पहली मोड तक पहुँच गए थे लेकिन अजीब बात ये थी की अभी तक मिश्रा जी ओर उनकी सहेली हमारे आगे ही
चल रहे थे/इशारे से मैंने रिम्पी को भी ,इस बात से अवगत कराया /रिम्पी को भी ये बात कुछ ज्यादा समझ नही आ रही थी ,पर मुझे जो समझ आया की,” क्या
ये मेरे लिए एक ओर अवसर था कि मै कुछ बोलू ,ओर वो सुने !”
लेकिन मै कहा कुछ बोल सकता था /जब मै एकदम सामने खड़े रहकर कुछ नही बोल पाया ,तो फिर उसके पीछे कैसे बोल सकता था ,ओर वैसे भी
लड़कियो पर टिप्पणी करना ,हमारे संस्कार मे ही नही थे हालांकी लड़कियो का पीछा करना भी हमारे संस्कार मे नही था ,लेकिन अपनी कमजोरी को तो मै
मै अपने संस्कार का नाम लेकर छिपा सकता था /कुछ इस् तरह मेरा दिल मुझको तसल्ली दे रहा था ……हाहाहाहाहा
लगभग 50 मीटर तक ओर हम सभी यू ही चलते रहे ,वो दोनों आपस मे कुछ गुनगुनाती रही और हम दोनों आपस मे गुनगुनाते रहे ,ना तो हमे उनकी
गुनगुनाहट सुनाई दे रही थी और ना उन्हे हमारी /हम सभी अब तक पाली चौराहे तक पहुँच चुके थे /उन दोनों ने अपनी-अपनी साइकिल का रुख नारायण
तिराहे की तरफ कर दिया था ,ओर दस कदम चलने के बाद मिश्रा जी ने साइकिल रोक कर अपना दाया पैर साइकिल के पैडल पर रख दिया क्यूंकी अब तक
तो उसे ज्ञात हो चुका था,कि मै कुछ करने लायक नही ,वेसे भी उसकी दूसरी बजह थी कि हम सभी अब भीड़ भाड़ बाले इलाके मे थे /
मिश्रा जी ओर उनकी सहेली जब 10-12 मीटर आगे निकाल गए ,तो पहली बार रिम्पी ने साइकिल चलाने की जिद की ,ये बात सुनकर मै काफी खुश
हुआ ओर मैंने साइकिल का हैंडल उसको हवाले करने के लिए आगे कर दिया /किन्तु अगले ही पल मैंने वापस हैंडल अपनी ओर खीच लिया ,क्यूंकी एक ही
पल मे मेरा दिमाग घूम गया था,मुझे समझ आ गया था,उसके पीछे रिम्पी की चाल क्या थी /
अगर उस दिन मै उसको साइकिल चलाने दिया होता तो वो जानबूझ कर कही ना कही ,साइकिल को मिश्रा जी की साइकिल के आगे लगा देता /इसलिए
मैंने ही साइकिल को ride किया ओर रिम्पी को पीछे बैठने को बोला /उसके बाद ,नारायण तिराहे ,भारतीय स्टेट बैंक ,बड़े बाजार बाली गली होते हुये हमने
मिश्रा जी को उनके घर तक छोड़ा ,बिलकुल वेसे ही जैसे कॉलेज से पाली चौराहे तक छोड़ा था ,मिश्रा जी के जाने के बाद उनकी सहेली भी अपने घर की ओर
चली गई ,किन्तु उनकी सहेली को घर छोड़ने की हिम्मत नही कर सकते थे /आखिरकार मै एक शरीफ़ लड़का था ,और अब तक रिम्पी ने कोई ऐसी जिद नही
रखी थी/
फिर जब हम अपने घर की ओर आ रहे थे ,तो बार बार मै रिम्पी से एक ही सवाल पूछे जा रहा था ,” यार उसे बुरा तो नही लगा होगा,कि मै उसके सामने
कुछ बोल नही पाया,भाई बता ना ,उसे बुरा तो नही लगेगा ना……..भाई बता ना …….. to be continued
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..mishra’s lover