Tulsidas Ka Jivan Parichay | तुलसीदास
तुलसीदास : Tulsidas के जीवन के सम्बंधित संपूर्ण जानकारी हम यहाँ लिख रहे है. आगे इसे हम समय समय पर अपडेट भी करते रहेंगे. Tulsidas Ka Jivan Parichay में अगर कोई गलतियाँ हो तो हमें ज्ञात कराये .
जन्म-स्थान :- राजापुर (बाँदा), सोरों (एटा) और सुकर क्षेत्र (आजमगढ़)
जन्म सन् :- 1497 ई०, 1526 ई० और 1532 ई०
मृत्यु सन् :- 1623 ई० और 1680 वि०
पिता :- आत्माराम दुबे
माता :- हुलसी
भाषा :- ब्रजभाषा
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Tulsidas Biography in hindi | Tulsidas
जीवन-परिचय :- Tulsidas hindi
डॉ. नगेन्द्र के ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में तुलसीदास की जन्मतिथि क्रमशः सन् 1497 ई०, सन् 1526 ई० तथा 1532 ई० दी गई है तथा जन्म-स्थान राजापुर जिला बाँदा, सोरों जिला एटा तथा शूकर क्षेत्र जिला आजमगढ़ वर्णित है । लेकिन मान्यता राजापुर ग्राम जिला बाँदा एवं जन्मतिथि सन् 1532 ई० को ही प्रदान की गयी है ।
इनकी माता का नाम हुलसी तथा पिता का नाम आत्माराम दुबे था । अभुक्त मूल में जन्म लेने के कारण जन्म से ही माता-पिता द्वारा परित्यक्त होने के कारण इनका बचपन बड़े कष्ट में बीता । सौभाग्य से इनकी भेंट बाबा नरहरिसदास ( tulsidas ke guru kaun the) से हो गयी, जिनके साथ में यह कई तीर्थ स्थानों में घूमते रहे और विद्याध्ययन भी करते रहे ।
काशी जाकर इन्होंने शेष सनातन नामक गुरु के पास पंद्रह वर्षो तक वेद-शास्त्र, दर्शन, पुराणों का अध्ययन किया । तत्पश्चात् वह अपनी जन्मभूमि लौट आये । इनका विवाह दीनबन्धु पाठक की सुंदर कन्या रत्नावली के साथ हुआ । ये उसे अत्यन्त प्रेम करते थे । एक दिन इनकी अनुपस्थिति में वह अपने मायके चली गयी । वे उसके वियोग को सहन न कर सके और भीषण वर्षा में नदी को एक शव के द्वारा पार कर आधी रात के समय पत्नी के पास पहुँचे गये । इनके इस कार्य से रत्नावली क्षुब्ध होकर बोली —-
“अस्थि चर्ममय देह मम, तासौ ऐसी प्रीति ।
तैसी जो श्रीराम महँ, होति न तो भवभीति ।।”
यह बात इन्हें ऐसी चुभी कि वह तुरन्त ही उल्टे पैर लौट आये और काशी जाकर संन्यासी हो गए । इनका शेष जीवन तीर्थ-यात्रा, भजन, कीर्तन, सत्संग और कथा विवेचन में ही बीता । इनकी मृत्यु सन् 1623 ई० (संवत् 1680 ई०) में वाराणसी में असीघाट पर हुई ।
साहित्यिक-परिचय :- Tulsidas in hindi
रामभक्ति का परमाश्रय लेकर तुलसीदास महाकवि बन गये । पत्नी के उद्बोधन ने उन्हें सांसारिक माया-मोह से मुक्त कर वैराग्य-पथ पर बढ़ाया, ईश्वर भक्ति में लगाया, राम-सीता के गुणगान हेतु अभिप्रेरित किया । तुलसी राम के अनन्य उपासक एवं अमर गायक बन गये । रामभक्ति तुलसी की काव्य-साधना का आधार बनी । कृष्णभक्ति कृष्ण गीतावली में तथा अन्य देवी-देवताओं की भक्ति स्तुतियों के रूप में ‘विनय-पत्रिका’ में प्रकट हुई । ब्रज तथा अवधी भाषाओं के साथ संस्कृत साहित्य का आधिकारिक ज्ञान उनकी काव्य-रचना सौष्ठव का मूल बना ।
रचनाएं :- Tulsidas ki rachnaye
तुलसीदास की साहित्यिक अवदान स्वरूप प्रमुख कृतियां निम्नलिखित है —–
‘रामलला नहछू’ , ‘वैराग्य संदीपनी’ , ‘रामाज्ञा प्रश्नावली’ , ‘जानकी मंगल’ , रामचरितमानस’ , ‘बरवै रामायण’ , ‘पार्वती मंगल’ , ‘गीतावली’ , ‘विनयपत्रिका’ , ‘कवितावली’ , ‘हनुमान बाहुक’ , ‘दोहावली’ , ‘कृष्ण गीतावली’ ।
तुलसीदास का ब्रज और अबधी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था । ‘विनय पत्रिका’ ब्रजभाषा में तथा ‘रामचरितमानस’ की रचना अवधी भाषा में की । यह दोनों रचनाएँ विश्व स्तरीय है । इन्होंने तत्कालीन सभी काव्य शैलियों में काव्य रचना की है । ‘रामचरितमानस’ उनका सर्वश्रेष्ट काव्य-ग्रन्थ है । यह हिंदी साहित्य का रत्नग्रंथ माना जाता है ।
तुलसीदास की रचना का विषय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के लोकपावन चरित्र का वर्णन करना है । उन्होंने राम के सम्पूर्ण जीवन का चरित्र किया । जीवन का कोई ऐसा पक्ष नही है, जो तुलसी की पैनी दृष्टि से बच गया हो ।मानव-जीवन के विविध पहलूओं और मानव-ह्रदय की कोमल, कठोर तथा स्वाभाविक भावनाओं का सजीव चित्रण तुलसी की अपनी विशेषता है ।
हिन्दी साहित्य में स्थान :-
विविध वर्णनो, चित्रण तथा अपने समय में प्रचलित काव्य-भाषाओं, शैलियों, विभिन्न रसों, अलकारों आदि के द्वारा तुलसी ने हिंदी साहित्य में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है । वे हिंदी साहित्य के एक अप्रतिम कलाकार है ।
‘हरिऔध’ ने उनके बारे में ठीक ही कहा है—-
Tulsidas Ke Dohe –
कविता करके तुलसी न लसे,
कविता लसी पा तुलसी की कला ।
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Tulsidas | Tulsidas in hindi
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