Ganesh Chaturthi Vrat Katha
हेल्लो नमस्कार दोस्तों तो आज हम आपको इस आर्टिकल Ganesh Chaturthi Vrat Katha के बारे में पूर्ण रूप से सारी जानकारी देने वाले है, जो आप इस पोस्ट में जानने आये है, तो हमारे इस पोस्ट के अंत तक बने रहे है, जो आप जानने आये है उसको ध्यान से पढ़े और साथ ही समझें क्योंकि आज कल Ganesh Chaturthi का त्यौहार चल रहा है, जो हर कोई इस त्यौहार को बड़े धूमधाम से मनाते है।
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अगर आप इस पोस्ट Ganesh Chaturthi Vrat Katha मे भगवान गणेश के बारे मे जानने आए है, तो आपको इसमे पता चलेगा की कैसे गणेश भगवान का जन्म हुआ था, कैसे उन्हे इस संसार मे सबसे पहले पूजा जाता है, तो बने रहे हमारे इस पोस्ट के अंत तक
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गणेश चतुर्थी व्रत कथा(Ganesh Chaturthi Vrat Katha)
संत और शास्त्रों के आधार पर इस बार 19 सितंबर दिन मंगलवार से 10 दिन तक यह गणेश चतुर्थी का गणेशोत्सव पर्व की शुरुआत हो रही है, वैसे ग्रंथो में लिखा है कि पौराणिक मान्यताओ के आधार पर भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश भगवान जी का जन्म हुआ था, जिस कारण हर महीने में आने वाली दोनों चतुर्थी तिथि पर गणेश भगवान की अच्छे से पूजा आराधना लोग करते है, जब भाद्रपद महीने की चतुर्थी आती है, तब लोग गणेश भगवान का जन्मोत्सव काफी धूमधाम से मानते है।
अगर आपको मालूम या आपने देखा हो तो महाराष्ट में गणेश भगवान के जगह-2 काफी बड़े-2 पंडाल लगे होते है, जहा पर गणपति जी की बहुत विशाल मूर्तियां स्थापित की जाती है, और फिर गणेश भगवान की लगातार 10 दिन तक पूजा आराधना की जाती है, गणेश भगवान की सारे देवी और देवताओ में सबसे पहले इनकी पूजा की जाती है, और हम जब भी कभी कई भी शुभ काम करते है, तो उससे पहले भी भगवान गणेश जी की पूजा करते है।
जिसके साथ ही भगवान गणेश जी की पूजा करने पर हम लोग ओम् गणेशाय नमः का जाप भी करते है, तो आइये अब जान ले गणेश उत्सव के इस प्यारे मौके पर कि गणेश जी का जन्म कथा के बारे में जानते है, तो इसके लिए आपको बस इस आर्टिकल Ganesh Chaturthi Vrat Katha को थोड़ा ध्यान से पढ़ना होगा।
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गणेश का जन्म ऐसे हुआ था
गणेश चतुर्थी कथा के आधार पर वक बार माता पार्वती जब स्नान करने के लिए जा रही थी, तो उन्होंने स्नान करने से पहले अपने शरीर के मैल से एक बहुत ही सुंदर और अदबुध एक बालक को उन्होंने अपने शक्तियों से उत्पन्न किया और उस बालक का नाम गणेश रखा, माता पार्वती से एक दिन उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी घर के अंदर न आने दे।
यह कहते ही माता पार्वती अंदर चली गयी फिर थोड़ी ही देर में वहाँ पर भगवान शिव जी आये, तो उस बालक ने भगवान शिव जी को अंदर जाने से रोकने लगे और बोले मेरी माँ अभी स्नान कर रही है, तो आप अभी अंदर नही जा सकते है, लेकिन भगवान शिव जी ने बालक को बहुत समझाया लेकिन गणेश जी नही माने, तब शिव जी गुस्से में आकर अपने त्रिशूल से गणेश जी की गर्दन काट दी और वह अंदर चले गए।
जब माता पार्वती ने शिव जी को अंदर आते देखा तो वह शिव जी से बोली आप अंदर कैसे आये, मैंने तो बाहर गणेश को बोला था किसी को भी अंदर ना आने दे, तब भगवान शिव जी ने बताया कि मैने तो उसको मार दिया, यह सुनते ही माता पार्वती जी ने रौद रूप धारण कर लिया और शिव जी से बोली कि आप मेरे पुत्र को अभी वापस जिन्दा करो, तब ही में अब यहाँ से चलूंगी नही तो में यही बैठी रहूंगी लेकिन शिव जी ने माता पार्वती को काफी मनाने की कोशिश की लेकिन पार्वती जी एक बात भी ना मानी।
जिसके बाद सारे देवी देवता वह इखट्ठे हो गए और उन सभी से माता पार्वती जी को काफी समझाया लेकिन उन्होंने किसी की बात ना मानी, तब शिव जी ने भगवान विष्णु से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लाओ जिसकी माँ अपने बच्चे के पीठ करके सो रही हो, जिसके बाद ही विष्णु जी ने गरुड़ जी को यह आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की जल्दी से खोज करके उसकी गर्दन लाइ जाये।
लेकिन गरुड़ जी ने काफी खोज करने के बाद उन्हें एक हथिनी ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की पीठ करके सो रही थी, गरुड़ जी उसका सर लेकर तुरन्त ही शिव जी के पास गए और उस सिर को गणेश भगवान के लगाया और उन्हें और गणेश जी को जीव दान दिया साथ ही यह भी वरदान दिया कि आज से जो कोई भी पूजा होगी उसमे गणेश जी की पूजा सबसे पहले की जायेगी।
इसलिए ही हम सब जब भी कोई काम करते है, तो सबसे पहले गणेश जी की पूजा करते है, जब ही कोई पूजा सफल होती है, अगर आप इस आर्टिकल Ganesh Chaturthi Vrat Katha को पूरा पढ़ लिया, तो आप गणेश भगवान के बारे मे बहुत कुछ जान गये होंगे।
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने हमारी Ganesh Chaturthi Vrat Katha पोस्ट को पूरा पढ़ा और शेयर किया।
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