Raskhan | रसखान
रसखान : Raskhan के जीवन के सम्बंधित संपूर्ण जानकारी हम यहाँ लिख रहे है. आगे इसे हम समय समय पर अपडेट भी करते रहेंगे. Raskhan Ka jivan Parichay में अगर कोई गलतियाँ हो तो हमें ज्ञात कराये.
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Kavi Raskhan | Raskhan Ka Jivan Parichay
जीवन-परिचय :- (Raskhan Biography In Hindi)
रसखान का पूरा नाम ‘सैय्यद इब्राहीम पिहानी वाले’ था । ये सैय्यद पठान वंश में पैदा हुए थे । इनका जन्म 1558 ई० में दिल्ली में हुआ था । इनका सम्बन्ध बादशाही वंश से था । विवश होकर इनको दिल्ली छोड़नी पड़ी । इन्होंने प्रेम वाटिका में स्वयं ही लिखा है –
Raskhan Ke Pad –
“देखि गदर हित साहिबी, दिल्ली नगर मसान ।
छिनहिं बादशा वंश की, ठसक छाड़ि रसखान ।।”
इनका प्रारम्भिक जीवन विलासितापूर्वक था और यह एक अत्यन्त सुन्दर नवयुवती से प्रेम करते थे । पर वह अपने सौन्दर्य पर इतना अभिमान करती थी कि रसखान की ओर ध्यान ही नही करती थी । उसकी इस उपेक्षा से खिन्न होकर रसखान उससे विरक्त हो गए । सुन्दरी प्रेम भक्ति के रूप से परिणम हो गए —–
Raskhan Ke Dohe —
“तौरि माननी तै हियो, फेरि मोहनी नाम ।
प्रेम देव की छविहि लखि, भए मिया रसखान ।।”
‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता’ के अनुसार यह गोस्वामी विठ्नलाल के शिष्य हो गए (raskhan kiske bhakt the) और उनके प्रभाव से इनके ह्रदय में कृष्णप्रेम का अंकुर पल्लवित तथा पुष्पित होने लगा । यह अरबी, फ़ारसी और संस्कृत के पंड़ित थे किन्तु ब्रजभाषा और ब्रजभूमि के अनुराग को अभिव्यक्त करने के लिए इन्होंने भी लोक भाषा ब्रजभाषा को ही अपना माध्यम बनाया और बादशाही वंश में जन्म लेकर भी जन्म-जन्म गोकुल गाँव के ग्वारन के मध्य में निवास की अभिलाषा लेकर प्रेम देव की छवि को देखने के लिए ब्रजभूमि घूमने लगे।
उन्हें वह प्रेम देव कभी अहीर की छोहरियों की छछिया भर छाछ पर नाच नाचता हुआ और कभी कुंज में राधा के पैरों को दबाता हुआ इस प्रकार यह जितना कृष्ण के रूप सौन्दर्य पर मुग्ध थे, उतने ही उनकी लीला भूमि ब्रज के प्राकृतिक सौन्दर्य पर भी मोहित थे । इनकी रचनाएँ ह्रदय पर मार्मिक प्रभाव डालती है । सन् 1618 ई० में इनका देहांत हो गया ।
रचनाएँ :- Raskhan ki Rachnaye In Hindi
रसखान की दो रचनाएँ है- ‘सुजान रसखान’ तथा ‘प्रेम वाटिका’ । इनमे प्रथम की रचना सवैया एवं कवित्त छंदों में तथा द्वितीय की रचना दोहा शैली में की गयी है । रसखान किसी परम्परा का पालन करने के बजाय नवीन परम्परा के जनक बने । इनकी मुक्तक शैली परवर्ती कवियों के लिए अधिक श्रेयस्कर हुई । इनकी सम्पूर्ण रचनाएँ मधुर ब्रजभाषा में है । इनकी भाषा सहज, सरस तथा स्वाभाविक है ।
बायोग्राफी | जीवन परिचय | Biography in Hindi
Raskhan | Raskhan In Hindi
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