Surdas ka Jivan Parichay | सूरदास
सूरदास : Surdas के जीवन के सम्बंधित संपूर्ण जानकारी हम यहाँ लिख रहे है. आगे इसे हम समय समय पर अपडेट भी करते रहेंगे. Surdas ka Jivan Parichay में अगर कोई गलतियाँ हो तो हमें ज्ञात कराये .
जन्म-स्थान :- रुकनता (मथुरा)
जन्म एवं मृत्यु सन् :- 1478 ई० से 1584 ई०
पिता :- रामदास बैरागी
भाषा :- ब्रजभाषा
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Surdas ka Jivan Parichay | Surdas
जीवन-परिचय :- surdas in hindi
सगुण भक्ति-शाखा में कृष्णभक्ति धारा के प्रतिनिधि कवि सूरदास का जन्म सन् 1478 ई० में दिल्ली के निकट सीही नामक ग्राम में मानते है । इस विषय में विद्वानों में मतभेद है । कुछ विद्वान आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क के रुकनता के पास साही ग्राम को मानते है । वह बहुत विद्वान थे, उनकी चर्चा लोग आज भी करते है। मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। सूरदास के पिता, रामदास बैरागी प्रसिद्ध गायक थे । ये सारस्वत ब्राह्मण थे । इनके जन्मान्ध होने के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है । इनके वणर्य-विषय की सजीवता और ह्रदयग्राही चित्र-रूप बताते है कि ये जन्मान्ध नही थे । श्रीकृष्ण की बाल-लीला, गोपी-उद्धव प्रसंग का जो रूप प्राप्त होता है वह किसी अंधे के लिए असम्भव प्रतीत होता है ।
सूरदास बचपन से ही शांत एवं वैरागी प्रकृति के थे । ये गऊघाट पर विनय के पद गाया करते थे । यही एक बार इनकी भेंट बल्लभाचार्य जी से हो गयी इनकी भक्ति भावना से प्रसन्न होकर स्वामी बल्लभाचार्य ने इन्हें शिष्य रूप में स्वीकार कर लिया और इन्हें कृष्ण-लीला का भजन करने को कहा । ये गोवर्धन पर्वत पर बने श्रीनाथ जी मंदिर के पुजारी हो गए और तन्मय होकर श्रीकृष्ण की लीलाओ का गुणगान करने लगे । स्वामी बल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने कृष्णभक्ति शाखा के आठ कवियों का एक संगठन बनाया जो ‘अष्टछाप’ के नाम से भी जाना जाता है । सूरदास इसके सर्वश्रेष्ठ कवि थे । उनकी मुत्यु पारसौली ग्राम में सन् 1584 ई० में हुई ।
साहित्यिक-परिचय :- surdas hindi
जन्मजात काव्य-प्रतिभा के धनी सूरदास ने दास्य एवं सख्य भाव की भक्ति को अपनाया । उन्होंने मुक्तक पद-रचना करते हुए ‘अष्टछाप’ कवियों में अपना नाम शीर्षस्थ बनाते हुए । विशिष्ट काव्य-प्रतिभा का परिचय दिया । उन्होंने सरल-सरस पद-रचना के साथ कुछ कूट पद भी रचे । उनके द्वारा लिखे गए ग्रन्थो की संख्या के विषय में पर्याप्त मतभेद है । कोई उन्नीस, कोई सोलह, कोई सात और कोई पांच बताता है, किन्तु उनकी कृतियो में से अब तक ‘सूरसागर’ , ‘सूरसारावली’ और साहित्य-लहरी’ ही प्राप्त हुई है । ‘सूरसागर’ में कृष्ण-लीला, गोपी-प्रेम, मथुरा-गमन, गोपी-विरह, उद्धव-गोपी सवांद आदि का विशद् वर्णन है । ‘सूरसारावली’ , ‘सूरसागर’ का संक्षिप्त संस्करण है और ‘साहित्य-लहरी’ कवि के दृष्टिकूट पदों का संग्रह है । ‘सूरसागर’ में सवा लाख पदों का संग्रह है, किन्तु अभी तक सात हजार पद ही प्राप्त हुए है ।
Surdas Ki Rachna | सूरदास की रचनाये
रचनाऐं :- Surdas
सूरदास ने अपनी रचनाओं में श्रीकृष्ण की विविध लीलाओं का वर्णन ब्रजभाषा में किया हैं । इनकी कविता में भावपक्ष और कलापक्ष दोनों सामान रूप से प्रभावपूर्ण है । सूर के सभी पद गेय है, अतः उसमे माधुर्य गुण की प्रधानता है । इनकी रचनाओं में व्यक्त सूक्ष्म दृष्टि के प्रभाव का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि आलोचक अब इनके अन्धा होने में भी संदेह करने लगे है ।
सूरदास ने सरल एवं प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है । इनका काव्य मुक्तक शैली पर आधारित है । कथा-वर्णन में वर्णानात्मक शैली का प्रयोग हुआ है । द्रष्टकूट पदों में कुछ क्लिष्टता का समावेश अवश्य हो गया ।
भाषा :- Language
सूरदास की भाषा प्रचलित व्यवहारिक ब्रजभाषा है । यह स्वाभाविक, व्यवहारिक तथा माधुर्य और प्रसाद गुणों से युक्त है । इसमें कही-कही अरबी, फ़ारसी, पंजाबी, गुजराती, संस्कृत आदि के शब्द पाए जाते है । प्रायः उन्होंने अन्य भाषाओं के शब्दों को तदभव रूप में ही ग्रहण किया है । भाषा में लाक्षणिकता व ध्वन्यात्मक भी विद्यमान है ।
जहाँ तहाँ व्याकरण की अशुद्धियाँ और शब्दों की तोड़-मरोड़ भी पायी जाती है । कही-कही मुहावरों और कहावतों के सुंदर संयोग ने भाषा में चमत्कार उत्पन्न कर दिया है ।
हिंदी साहित्य में स्थान :- Surdas Ke Dohe
संस्कृत साहित्य में जो स्थान आदिकवि वाल्मीकि का है, वही स्थान ब्रजभाषा साहित्य में सूर का है । सुर एक भावुक कवि, सच्चे भक्त, अनुशासित सेवक, सरल ह्रदय और निर्भीक सन्त पुरुष थे । सूर के बारे में ठीक ही कहा जाता है —
किधौं सूर को सर लग्यौ, किधौं सूर की पीर ।
किधौं सूर को पद लग्यौ, बेध्यो सकल शरीर ।।
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Surdas | surdas in hindi
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